सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना कर टीकाकरण की जबरदस्ती रोकने में विफलता और गैर कानूनी आदेश देने वाले गुजरात और मेघालय हाई कोर्ट के जज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर।


  


🔶 सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट  जज सी. एस. कर्णन को कोर्ट अवमानना में 6 महीने जेल भेजा था।


🔶 आरोपियों को फायदा पहुंचाने के लिए रिश्वत लेकर गैर कानूनी आदेश पारित करने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के जज शमीत मुखर्जी को पुलिस ने गिरफ्तार किया था।


🔶 ऐसे ही मामलों में हाई कोर्ट जज निर्मल यादव और जज शुक्ला के खिलाफ सी.बी.आई ने आरोपपत्र दायर किया है।


🔶 आरोपी जजेस द्वारा अपने पद का दुरुपयोग कर टीका कंपनियों को हजारों करोड़ का फायदा पहुंचाने और देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने तथा लोगों के मूलभूत संवैधानिक अधिकारों का हनन रोकने की बजाय आरोपी अधिकारियों की प्रशंसा करने के लिए झूठे सबूतों का इस्तेमाल  करने का आरोप है। उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (INDIAN PENAL CODE) की धारा 409, 166, 52, 115, 304-A, 307, 218, 219, 192, 193, 471, 474 आदि धाराओं के तहत  कार्यवाही की मांग की गई है।


🔶 मेघालय हाई कोर्ट  के चीफ जस्टिस संजीव बनर्जी को पहले ही एक सजा के तहत 60 जजेस वाले मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पद से हटाकर 4 जजेस वाले मेघालय हाई कोर्ट में ट्रांसफर किया जा चुका है।


🔶 इमानदार जजेस और सरकारी अधिकारियों द्वारा नेचुरल इम्यूनिटी वाले लोगों को, जो सबसे सुरक्षित है। और टीका लेने वालों से 13 गुना अधिक बेहतर है, उन्हें सभी सुविधा प्रधानता से देने की संभावना है।


      

                            एडवोकेट निलेश ओझा 
                                   राष्ट्रीय अध्यक्ष
                            इंडियन बार  एसोसिएशन


1.   गुजरात हाई कोर्ट के जजेस की गलतियां। 


1.1.  सुप्रीम कोर्ट ने सभी जजेस को बार - बार आगाह किया है। कि किसी भी व्यक्ति ने अगर कोई याचिका दायर की है।  तो  हर जज की यह जिम्मेदारी है कि, उस याचिका के सभी मुद्दों पर और याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए सभी ‘केस लॉ’ को अच्छी तरह से सुने और उसका विस्तृत विश्लेषण अपने आदेश में करें की किस तरह उन मुद्दों को माना जा सकता है। और क्यों माना नहीं  जा सकता है। लेकिन आरोपी जजेस द्वारा उस आदेश के खिलाफ काम किया गया है। ऐसे जजेस  सजा का प्रावधान कानून में दिया गया है।


1.2. सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाये गए नियम का उंल्लघन कर गैरकानूनी आदेश देने वाले गुजरात हाई कोर्ट के दो जजेस के खिलाफ कोर्ट अवमानना और अन्य कानूनी करवाई के लिए याचिका दायर की है। 

ऐसे जजेस कोर्ट अवमानना और भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा  52, 166, 109, 409, 218, 219, 192, 193, 115, 307, 34, 120 (B) आदि धाराओं के तहत सजा के हक़दार है।  


1.3. याचिकाकर्ता ने अहमदाबाद कॉर्पोरेशन के कमीशनर द्वारा जारी एक आदेश को निरस्त करने की मांग की थी। उस आदेश में अहमदाबाद में सार्वजनिक स्थानों पर टीका (Vaccine) न लेने वालों को प्रवेश पर पाबंदी लगाई गई थी।  जो कि गैरकानूनी थी।  क्योंकि मा. सर्वोच्च व उच्च न्यायालय के आदेश, भारतीय संविधान और केंद्र सरकार द्वारा स्पष्ट की गयी नितियों से यह साफ हो गया था कि, किसी भी व्यक्ति को उसके टीका (Vaccine)  न लेने की वजह से किसी भी किस्म का भेदभाव नहीं किया जा सकता।


1.4. गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने अपने आदेश Madan Milli vs. UOI 2021 SCC OnLine Gau 1503 में यह भी स्पष्ट किया की टीका लेनेवाले लोगों को भी करोना होता है। वे लोग भी करोना का प्रसार कर सकते हैं। और उनकी मौत भी करोना से हो सकती है। इसलिए उनमे और टीका नहीं लेने वालों में कोई भी भेदभाव नहीं करना चाहिए।


1.5.  लेकिन आरोपी जजेस जस्टिस  जे.  बी.  पार्डीवाला  और  जस्टिस निरल आर. मेहता ने सभी कानून और सबूत को नजरअंदाज कर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ जाकर याचिका को खारिज कर दिया। और लोगों को सलाह दे डाली की सभी लोग कोरोना से बचने के लिए टीका लगवाए और दो डोज के अलावा बुस्टर डोज भी लगवाए। सबूतों से यह साफ हो गया है की जजेस द्वारा बतायी गई बातें झूठी हैं और उसकी वजह से देश की तिजोरी पर हजारों करोड़ रुपये का अनुचित बोझ पड़ेगा और टीका कंपनियों का अनुचित लाभ होगा। जो की कोर्ट अवमानना का और भारतीय दंड संहिता के तहत एक शिक्षापत्र अपराध है।


1.6.  जिन लोगों को कोरोना होकर चला गया है अथवा जो कोरोना वायरस के संपर्क में आए हैं, वे सबसे ज्यादा सुरक्षित लोग हैं । जिन्हें कोरोना नहीं हो सकता। वे लोग कोरोना नहीं फैला सकते और उन लोगो की मृत्यू कोरोना से नहीं हो सकती। उनकी प्रतिरोधक क्षमता कोरोना के टीके से 13 गुना ज्यादा असरदार है। ऐसे लोगों का टीकाकरण करना मूर्खता है और यह टीकाकरण लोगों के शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके दुष्परिणामों हो सकते हैं। इसलिए इन सभी लोगों को टिका नहीं लेना ही योग्य है। इसी बारे में AIIMS के Epidemiologist डॉ. संजीव राय और अन्य जगत प्रसिद्ध डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के द्वारा अनेक किए हुए खोज पत्र निचे दिए गए लिंक पर उपलब्ध है।  

Link: https://youtu.be/-btDk0eSi5U


1.7.   जिन लोगों में ऐसी प्राकृतिक शक्ति विकसित हो चुकी है। भारत में ऐसे 70% से ज्यादा लोग हैं। उन्हें टीकाकरण की आवश्यकता नहीं है। लेकिन वैक्सीन कंपनी के लिए हजारों करोड़ रुपयों का फायदा करने के उद्देश्य और नापाक मकसद हासिल करने के लिए कुछ अधिकारी सरकारी संस्थाओं द्वारा पत्र जारी कर टीकों को अनिवार्य कर झूठी खबर प्रकाशित करते हुए गंभीर अपराध फौजदारी प्रक्रिया के अंतर्गत कर रहे हैं।


1.8. ऐसे में उन लोगों को टीका लेने के लिए कहना यह बहोत बडा अपराध है।  




2.       मेघालय हाई कोर्ट के जज की गलतियां।

मेघालय हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने २३ जून २०२१ को अपने आदेश Registrar General vs. State of Meghalaya 2021 SCC OnLine Megh 130 में स्पष्ट किया की टीका नहीं लेने वालों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।लेकिन ६ दिसंबर २०२१ को दूसरे जज संजीब बनर्जी ने उसी मामले के विपरीत आदेश परीत किया और राज्य सरकार को निर्देश दिया की वे ऐसे नियम बनाये जिससे टीका नहीं लेने वालों के खिलाफ प्रतिबंध लगाए जा सके।  


न्या. संजीब बनर्जी के आदेश संविधान के द्वारा नागरिकों को दिए गये अधिकारों का हनन करने वाले है और साथ ही में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाये गए उस कानून की अवमानना कि है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था की उसी हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दुसरा जज कोई भी आदेश नहीं दे सकता । ऐसे हालात में मामले को पूर्ण खंडपीठ को सौपा जाए। और पूर्ण खंडपीठ ही इस पर निर्णय ले सकता है [Dr. Vijay Sadho Vs. Jagadish (2001) 2 SCC 247, Sant Lal Gupta Vs. Modern Cooperative Group (2010) 13 SCC 336]


2.1.  केंद्र सरकार के निर्देशानुसार टीकाकरण पूरी तरह से स्वैच्छिक है। वैक्सीन को नहीं लेने से रेल्वे प्रवास/सुविधा, राशन, कर्मचारियों का वेतन अथवा कोई अन्य सरकारी अधिकार और  निजी सुविधा को रोका नहीं जा सकता। भारत सरकार के निर्देश नीचे दिए गए लिंक पर उपलब्ध हैं।

Link:https://drive.google.com/file/d/1-w0AyOW3EThsPCSNGwXXidMbl2CdJAbI/view?usp=sharing                    

                             

2.2.  भारत सरकार के स्वास्थ मंत्रालय द्वारा १ मार्च, २०२१ को दिये गये उत्तर इस प्रकार हैं।

“RTI reply by Government of India's Health Ministry on 1.03.2021 to Shri. Anurag Sinha

प्रश्न १: कोरोना वैक्सीन लेना स्वैच्छिक है या अनिवार्य , जबरदस्ती?

उत्तर :   कोरोना वैक्सीन लेना स्वैच्छिक है।

प्रश्न २ : क्या वैक्सीन नहीं लेने पर सारी सरकारी सुविधाए बंद कर दी जायगी, सरकारी योजना पेंशन ?

उत्तर   : आवेदन में लिखी बातें निराधार है।  किसी भी सरकारी सुविधा, नागरिकता, नौकरी इत्यादि से वैक्सीन का कोई सम्बन्ध नहीं है। 

प्रश्न ३ : क्या वैक्सीन नहीं लेने पर नौकरी नहीं मिलेगा, ट्रेन, बस, मेट्रो में चढ़ने नहीं मिलेगी?

उत्तर   :आवेदन में लिखी बातें निराधार है।  किसी भी सरकारी सुविधा, नागरिकता, नौकरी इत्यादि से वैक्सीन का कोई सम्बन्ध नहीं है। 

प्रश्न ४: यदि कोई IAS, IPS स्वास्थ्य या पुलिस कर्मचारी नागरिक को धमकी दे की वैक्सीन ले नही तो ये कर देगे तो नागरिक क्या कर सकती क्या कोर्ट जा सकते हैं?

उत्तर   : आवेदन में लिखी बातें निराधार है।  किसी भी सरकारी सुविधा, नागरिकता, नौकरी इत्यादि से वैक्सीन का कोई सम्बन्ध नहीं है। 

प्रश्न ५: क्या वैक्सीन नहीं लेने पर स्कूलों, कॉलेज, विश्वविद्यालय, गैस कनेक्शन, पानी, बिजली कनेक्शन, राशन आदि के लिए क्या वैक्सीन नहीं मिलेगे ?

उत्तर  : आवेदन में लिखी बातें निराधार है।  किसी भी सरकारी सुविधा, नागरिकता, नौकरी इत्यादि से वैक्सीन का कोई सम्बन्ध नहीं है। 

प्रश्न ६ : क्या वैक्सीन नही लेने पर नौकरी से निकला जा सकता है वेतन रोका जा सकत है, निजी और सरकारी विभाग दोनों मे?

उत्तर  : आवेदन में लिखी बातें निराधार है।  किसी भी सरकारी सुविधा, नागरिकता, नौकरी इत्यादि से वैक्सीन का कोई सम्बन्ध नहीं है। “


2.3.  मा. उच्च न्यायालय ने Osbert Khaling Vs. State of Manipur and Ors. 2021 SCC OnLine Mani 234, इस मामले में मनरेगा सदस्यों का वेतन वैक्सीन ना लेने की वजह से रोकने वाले असंविधानिक निर्णय को खारिज कर दिया। इसी में ही मा. उच्च न्यायालय ने भी अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से लिखा है। की, टिका लेना अथवा नहीं लेना उसका निर्णय उस व्यक्ति को खुद ही लेना है।

In Osbert Khaling Vs. State of Manipur and Ors. 2021 SCC OnLine Mani 234, it is ruled as under; 

“8…. Restraining people who are yet to get vaccinated from opening institutions, organizations, factories, shops, etc., or denying them their livelihood by linking their employment, be it NREGA job card holders or workers in Government or private projects, to their getting vaccinated would be illegal on the part of the State, if not unconstitutional. Such a measure would also trample upon the freedom of the individual to get vaccinated or choose not to do so.”


2.4. इसी मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय तथा मा. कर्णाटक उच्च न्यायालयने भी निर्णय दिया है। की कोई भी व्यक्ति कोरोना का इलाज,आयुर्वेदिक, होम्योपॅथी या अन्य किसी भी चिकत्सा पद्धति द्वारा करने के लिए स्वतंत्र है।  उसे केवल ॲलोपॅथी का टीका लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।  [A. Varghese Vs. Union of India 2020 SCC OnLine Kar 2825, Dr. AKB Sadbhavana Mission School of Homeo Pharmacy v. Ministry of Ayush, (2021) 2 SCC 539]


2.5.  वैक्सीन लेने का दबाव बनाने के लिए कोई भी सुविधा रोकना भारतीय संविधान के कलम 14, 19, 21 का उल्लंघन सिद्ध होता है। [Re Dinthar Incident Vs. State of Mizoram 2021 SCC OnLine Gau 1313, Madan Mili Vs. UOI 2021 SCC OnLine Gau 1503]


2.6.  केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है, कि टीकाकरण अनिवार्य नहीं होने के कारण वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभावों के लिए मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है।

Link:https://drive.google.com/file/d/15IwNjfxryS9Na8hmH-LTn2q_57pwGGJk/view?usp=sharing


2.7.  इससे स्पष्ट होता है की जो अधिकारी टीकाकारण के लिए दबाव लायेंगे,   वे सभी अधिकारी पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा देने के लिए स्वतः जबाबदार रहेंगे।  

In Registrar General Vs. State of Meghalaya 2021 SCC OnLine Megh 130,  it is ruled as under;

“7… Every human being of adult years and sound mind has a right to determine what shall be done with their body’. Thus, by use of force or through deception if an unwilling capable adult is made to have the ‘flu vaccine would be considered both a crime and tort or civil’ wrong”


3.  आपदा प्रबंधन अधिनियम, 

2005 की धारा 38(1), 39(a) के अनुसार राज्य सरकार को केंद्रीय सरकार द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुरूप कार्य करना पड़ता है । केंद्र सरकार के नियमों के खिलाफ कोई भी नियम बनाने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है।


4.   जिन चीजों की प्रत्यक्ष रूप से मनाही है (जैसे कि जबरन टीके लगाना) उसे अप्रत्यक्ष रूप से नियम थोप कर नहीं किया जा सकता है। यह कानून सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट लिखा है। [Noida Vs. Noida (2011) 6 SCC 508]


5.  आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51 (B), 55 के अनुसार, यदि राज्य सरकार अथवा उनके अधिकारीऔर डॉक्टरों ने केंद्र सरकार के निर्देशों के खिलाफ अथवा उसके नियमों का पालन करने से इनकार करते है तो वे लोग सजा के पात्र होंगे।


6.  इंडियन मेडिकल अस्सोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष के. के. अग्रवाल और   दिल्ली के 60 डॉक्टर जिनकी कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बावजूद मृत्यू कोरोना से हुई थी।    

1. https://www.ndtv.com/india-news/dr-kk-aggarwal-ex-chief-of-india-medical-association-ima-dies-of-covid-19-coronavirus-2443827

2. https://theprint.in/health/at-least-60-delhi-doctors-have-died-in-2nd-covid-wave-families-are-left-to-pick-up-pieces/661353/ 


7.  औरंगाबाद के डॉ. स्नेहल लूनावत की मृत्यू ‘कोव्हीशील्ड’ टीका के दुष्परिणामों के कारण हुई यह भारत सरकार की ए.ई.एफ.आई (AEFI) समिति ने भी स्वीकार किया है।  

Link:https://www.lokmat.com/nashik/death-female-doctor-after-vaccination-a587/


8.  हाल ही में, एक 23 वर्षीय युवक की मृत्यु तीन घंटे के भीतर, वैक्सीन के दुष्परिणामों के कारण हुई। मृत युवक की माँ ने टीका सुरक्षित है, इसका झूठा प्रचार करने वाले डॉ. रणदीप गुलेरिया, डॉ. व्ही. जी. सोमाणी उनके साथ टीका लेने के लिए दबाव लाने के लिए और रेल्वे पास लेने के लिए टीका लेना अनिवार्य होने का यह असंविधानिक नियम बनाने वाले मुख्य सचिव सीताराम कुंटे, महापालिका आयुक्त इकबाल चहल, सुरेश काकाणी, टीका निर्माता कंपनी के आदर पूनावाला आदि लोगों के विरोध में षड़यंत्र रच कर फ़साने, हत्या, सरकारी निधि और सरकारी संस्था का दुरूपयोग और टीका निर्माता कंपनियों को फायदा पहुंचने के लिए और अन्य गुन्हा के लिए भारतीय दंड सहित की धारा  52, 115, 302, 420, 409, 120 (बी), 109, 34 और आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 (बी), 55 आदि धाराओं के तहत कार्यवाई के लिए मुकदमा दर्ज किया है।

Link:https://drive.google.com/file/d/1Owe7Ty9jhDr1Vfd6y7RIrmMt39BUu1CX/view?usp=sharing


9.  टीका के दुष्परिणामों से लोगों की मृत्यू होने के कारण 11 यूरोपी देशों ने कोव्हीशिल्ड (Astrazenica) इस टीके पर रोक / प्रतिबंधित लगाई थी। अब 15 देशों ने उन पर रोक लगा दी है।  

 Link:

https://timesofindia.indiatimes.com/life-style/health-fitness/health-news/covishield-coronavirus-vaccine-with-covishield-astrazeneca-banned-in-some-countries-should-we-be-worried-about-its-safety/photostory/83398722.cms 


10.  वैक्सीन के दुष्परिणामों के कारण टीका लेने वाले लोगों की जान जा   सकती है। उनको बहरापन, लकवा, अंधापन रक्त जमना ( ब्लड क्लॉटिंग ) ऐसे गंभीर बीमारी और जान लेवा इस तरह के दुष्परिणामों के शिकार हो सकते है। 

वैक्सीन के दुष्परिणामों के कारण देश में अब तक 10,700 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। कोरोना वैक्सीन के दुष्परिणामों से होने वाली मौतों की सूचना देने वाले समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार नीचे दिए गए लिंक पर उपलब्ध है।

Link:https://drive.google.com/file/d/1uikc1a6_KDzUx7HNLrfwaI1NJRt0D_YP/view?usp=sharing

टीके के अन्य दुष्परिणामों पर इंग्लैंड के टेस लॉरी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट निचे दिए गए लिंक पर उपलब्ध है।

Link: https://dailyexpose.co.uk/2021/06/24/crimes-against-humanity-uk-government-release-21st-report-on-adverse-reactions-to-the-covid-vaccines/


11.  दुनिया भर के वैज्ञानिकों और नेशनल टास्क फोर्स के सदस्यों ने अपने निष्कर्षों में पाया है । कि, जिन लोगों को कोरोना की बीमारी हो कर चली गई है या जो कोरोना बीमारी के संपर्क में आए हैं, उनके शरीर में जो प्रतिरोधक क्षमता बनती है, वह प्रतिरोधक क्षमता टीकाकरण के प्रतिरोधक क्षमता से सैकड़ों गुना अधिक प्रभावशाली होती है।

क्यों की टीकाकरण के द्वारा हम सिर्फ अप्रभावी कीटाणु अथवा शरीर को वायरस से लड़ने के लिए और तैयार करने के लिए इसी तरह के सिंथेटिक रसायन शरीर में छोड़े जाते हैं जो वायरस (Virus) के साथ लड़ने के लिए मदत करता है। लेकिन जिस व्यक्ति को कोरोना हो चूका है, उसके शरीर ने कोरोना वायरस से असली युद्ध लड़के लड़ाई जीती हुई है। और उस व्यक्ति को दोबारा कोरोना होने की, उसके जीवन को होने वाला नुकसान और उस व्यक्ती के द्वारा कोरोना दूसरों में पसरने की संभावन नहीं होती। एक असाधारण स्थिति को छोड़कर, वह व्यक्ति सबसे सुरक्षित माना जाता है।

 Link : https://youtu.be/6v5VrpgXPm4



मुरसलीन अ. शेख

जिल्हा अध्यक्ष 

मानव अधिकार सुरक्षा परिषद




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