भ्रष्ट ,चोर ,जालसाज, देशद्रोही जजोद्वारा केस वापस लेने के लिए 400 करोड़ का ऑफर



भ्रष्ट ,चोर ,जालसाज, देशद्रोही जजोद्वारा केस वापस लेने के लिए 400 करोड़ का ऑफर





१. सुप्रिम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टीस दीपक गुप्ता ,रंजन गोगोई के खिलाफ का केस वापस लेने के लिए एजंट  पहुंचे रशीद खान के घर .

२. शिकायतकर्ता ने की काले धन की जांच की मांग .

३. दोषी जजेस की गिरफ़्तारी के लिए देशभर से दबाव. नागरिको में आक्रोश.

४.  आरोपी जजेस की नार्को टेस्ट , ब्रेन मॅपिंग , लाय डिटेक्टर टेस्ट करने की मांग.

५. लॉकडाउन के बाद लाखो नागरिक खुद दिल्ली पहुंचकर करेंगे जजेस की गिरफ़्तारी.

६.  देश की जनता सी. आर. पी. सी. ४३ के अधिकारों का उपयोग कर खुद करेगी भ्रष्ट जजेस को गिरफ्तार.

७.  सुप्रिम कोर्ट के देशद्रोही जज दीपक गुप्ता, ऍड.फली नरीमन द्वारा भारतीय सेना के  जवानो, शहीद जवानो की विधवाए और परिवार के सदस्यों  का अपमान  और  दुश्मन देश  की सेना  को अप्रत्यक्ष समर्थन देना और  उन  आरोपीयो  को  बचाने के  लिए चीफ जस्टीस ऑफ़ इंडिया के पद का दुरुपयोग करने वाले रंजन गोगोई को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग .

        

                                रशीद खान पठान
                                   राष्ट्रीय सचिव
                       मानव अधिकार सुरक्षा परीषद





                                    ऍड. नीलेश ओझा
                                      राष्ट्रीय अध्यक्ष
                                 इंडियन बार  एसोसिएशन

   
दिल्ली:- भ्रष्ट,देशद्रोही,जालसाज सुप्रिम कोर्ट का रिटायर्ड जज दीपक गुप्ता,रंजन गोगोई,ऍड.फली नरीमन,ऍड.सिद्धार्थ लुथरा के अपराधिक साजिश का  खुलासा  होते ही  देशभरसे उन्हें गिरफ्तार करने के  लिए बढ़ता दबाव देखकर आरोपीयो के मध्यस्थ (agent) ने शिकायतकर्ता रशीद खान पठान के  घर  पहुंचकर केस  वापस लेने  के  लिए   400 करोड़   रुपये का   ऑफर   दिया.  इस बारे में रशीद खान   पठान  ने सी.बी.आय., आय.बी , राष्ट्रपती , प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अमीत शाह के पास  10 जून को शिकायत दर्ज कराई है जिसका केस नं  PRSEC /E / 2020/ 11809 यह है.
      
      अब सवाल यह उठने लगा है की एक सुप्रिम कोर्ट के जज के पास 400 करोड़ रुपये कॅश कहासे आए और वह ( दीपक गुप्ता) एक केस निपटाने  को 400   करोड़ रुपये दे सकता  है तो  उसके  पास में  पूरा काला धन कितना होगा .  और  यह धन किन  किन  केस में  भ्रष्टाचार करके गरीबो का हक़ मारकर कमाया गया है.

   इससे पहले भी बॉम्बे हायकोर्ट के चीफ जस्टीस मोहीत शाह ने जज लोया को एक मामले में १००  करोड़ रुपये  कॅश देने का  ऑफर दिया था और ऑफर मना करने के   बाद में  उनकी  और  कुछ  गवाहों  की संदिघ्द मौत हो गई थी. यह बात उन्होंने ( जज लोयाने)  अपनी डायरी में लिख कर रखी थी.

         इस बारे में देश के विभिन्न वकिल संघटनो ,  बार  एसोसिएशन, राजनितीक पार्टीया और सामान्य  जनता ने  रशीद खान पठाण , ऍड. निलेश ओझा , मुसलीन शेख द्वारा उठाए गए  मुद्दों का समर्थन देकर तुरंत जांच करने और दोषी जजेस को गिरफ्तार करने की मांग की है. 
        इंडियन बार एसोसिएशन , ऑल इंडिया एस. सी. एस. टी. एंड  मायनॉरिटी  लॉयर्स  एसोसिएशन  के  चेअरमन ऍड. विवेक  रामटेके , भाजपा के महेश मिश्रा , ओम शिंदे , एम. आय. एम. के अमजद खान, सय्यद   इम्तियाज़ ( मुन्नुभाई ) पुसद न. प. के  पूर्व  उपाध्यक्ष  एजाज अहमद, कॉंग्रेस के मो. इश्त्याक ,  बहुजन वंचित  आघाडी , साहसिक जनशक्ति संघटना के अध्यक्ष रविन्द्र कोटंबकर, साहसिक पत्रकार संघ , महिला आघाडी मानव अधिकार सुरक्षा परिषद के प्रकाश आर्य और अन्य पदाधिकारी, सुप्रिम कोर्ट एड हाय कोर्ट लिटीजंटस एसोसिएशन के  देशभर के पदाधिकारी आदिने अपना समर्थन दिया है .
         प्राप्त जानकारी के अनुसार देश के हर गांव से कम से कम पांच नागरिक ऐसे कुल 10 लाख तक लोग    लॉकडाउन के   बाद   दिल्ली पहुंचकर सी.आर. पी.सी. की धारा 43   के तहत आरोपी जजेस   को गिरफ्तार कर पुलीस को सौपने वाले है  ऐसी  जानकारी सुप्रिम   कोर्ट लिटीजंटस एसोसिएशन के सचिव मुरसलीन शेख ने दी.
      

   
                                मुरसलीन अ.शेख
                                       सचिव
                            सुप्रीम कोर्ट अँड हाइ कोर्ट 
                       लिटजंटस असोसिएशन ऑफ इंडिया



क्या हैं मामला:- 
        
        १२ मार्च २०१९ को न्या.रोहींटन नरीमन और न्या.विनीत सरन ने बिना किसी सुनवाई के  आधार  पर सीधे एक ख्रिशचन  अल्पसंख्याक समुदाय के वकील ऍड. मैथ्यू नेदुमपरा को कोर्ट अवमानना  का   दोषी करार दे दिया. इस बात से वकील संगठनो में रोष व्याप्त हो गया.               
        इस देश के सविधान के मुताबिक कोई भी व्यक्ति को दोषी करार देने से पहले न्यायिक प्रक्रिया नुसार उसे नोटिस देना,   आरोप  निश्चित करना,    बचाव  का  मौका  देना,   केस  लड़ने  के  लिए  वकील  देना बंधनकारक है.
     अजमल कसाब जैसे आतंकवादी को भी सभी सुविधा दी गयी थी. लेकिन एक अल्पसंख्याक समुदाय के  वकील को  व्यक्तिगत  दुशमनी के  चलते  संविधान  के  खिलाफ  जाकर  दोषी  करार  दिए  जाने  के खिलाफ इंडियन बार एसोशियेशन के महाराष्ट्र और  गोवा  के  अध्यक्ष ऍड.  विजय  कुर्ले  और  मानव   अधिकार  सुरक्षा  परिषद  के  राष्ट्रीय सचिव रशीद खान  पठान ने  चीफ जस्टिस   ऑफ  इंडिया  के   पास  शिकायत दर्ज की. 




          उन्ही दो जजो ने दुसरे एक मामले मे एक आरोपी को बचाने के लिए पद का दुरुपयोग कर गलत आदेश पारीत  करणे  को  लेकर  की थी उसमे भी जस्टिस नरीमन का भ्रष्टाचार  और  कानून की  समझ ना होणे के सबुत दिये गये थे.  इसके  साथ  ही  जस्टिस  नरिमन के पिता फली   नरिमन   द्वारा  भारतीय सेना ,  पुलीस  और  देश  के  खिलाफ पाकिस्तानी   समर्थक   आतंकवादीयोंको   हिंसा  के  द्वारा  भारत  की बरबादी लडाई में समर्थन देने के मामलें में भी सबुत दिए गए थे.
      इस शिकायत के आधार पर जस्टिस रोहिटन नरीमन और जस्टिस विनीत सरण की गिरफ्तारी तय मानी  जा  रही थी. ज्ञात  हो की किसी भी व्यक्तो के गलत तरीके से सजा देने वाले जज को ७ साल सजा का प्रावधान आय. पी. सी. ( I.P.C.)  की धारा 220, 219 आदि में किया गया है. और सुप्रिम कोर्ट की  संपत्ती का  दुरुपयोग खुद  के  व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए करनेवाला जज आय. पी. सी. की धारा  409 के  तहत आजीवन कारावास की सजा का हकदार है.
    
        उस कारवाई से बचने के लिए जस्टिस नरीमन ने एक साजिश के तहत उनके सहयोगी वकील  मिलिंद साठे और  कैवान  कल्यानिवाला के हाथो एक पत्र बनवाकर खुद ही उसका संज्ञान  लेकर खुद  आरोपी रहते हुए  खुद  की ही केस में  आदेश  पारित  कर  शिकायतकर्ता  को नोटिस जारी किया.
    
     कानून के मुताबिक आरोपी जज को खुद के केश में आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है. ऐसी ही गलती करने वाले  जस्टिस  कर्णन के खिलाफ चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने डॉक्टरो की कमिटी बनाकर कही वो पागल तो नही है इसकी जाच करने की आदेश दिए थे. और बाद मे जस्टिस कर्णन ६ महीने के लिए जेल भेज दिया था.

         तब के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के साजिश में शामिल होने के सबुत  जब १२  मार्च को  जस्टिस  नरीमन द्वारा   वकिल के   खिलाफ गैरकानूनी आदेश पारित किये  गए थे  तब सजा पर  सुनवाई  के  लिए २७ मार्च २०१९ की तारीख तय की गयी थी.उस अत्याचार को रोकने के लिए इंडियन बार असोसिएशन द्वारा दिए गए  २० मार्च  २०१९  के पत्र पर रंजन गोगोई ने कोई कारवाई नही की और जस्टिस नरीमन को पद का दुरूपयोग करने दिया.

        इस वजहसे जस्टिस रंजन गोगोई Re:M.P. द्विवेदी (Dwivedi) AIR 1996 SC 2299 मामले में बनाये गए कानून के हिसाब से कोर्ट अवमानना के दोषी है.

         बाद में जब रोहिटन नरीमन ने केस से खुद को अलग किया तब उस  केस  में नयी  पीठ  ( बेंच ) बनाने के  लिए  मामला  तब के  चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के पास आया. 


                

 ऍड . विवेक रामटेके
                                          चेयरमैन 
                                ऑल इंडिया एसी एस.टी
                            मायनोरीटी लॉयर्स एसोसिएशन

           मामले की सुनवाई १० अप्रैल २०१९ को रखी गयी थी. लेकिन कुछ वरिष्ठ जजों ने नरीमन की गलती  की  वजह से केस लेने  से  मना कर दिया और CJI रंजन गोगोई  को  सलाह  दी  की  मामले  को  ठंडे बस्ते में डाल दो नहीं तो जनता और वकील में  आक्रोश  फ़ैल  जायेंगा और नरीमन के  खिलाफ  कारवाई  करनी  पडेगी.  जस्टिस  गोगोई  ने मामले को ठन्डे बस्ते में डाल दिया. 10  अप्रैल  को  मामला  बोर्ड  पर नही आया.  जबकी चारो उत्तरवादी  कोर्ट मे पहुच चुके थे. बाद में कई महिने गुजर गए पर कोई  भी  समझदार,  ईमानदार  और  वरिष्ठ  जज केस लेने को तैयार नही हो रहा  था.  रशीद खान  पठान, ऍड.  निलेश ओझा ने खुद सुप्रीम कोर्ट के  संबंधित  असि.  रजिस्ट्रार से और  अन्य अधिकारीयों से मुलाकात की तो उन्हें बताया गया की २०१०  का ऍड. प्रशांत भूषण का कंटेम्प्ट  केस  अभीतक  प्रलंबित  है  इसलिए  उनके केस के बाद आपका केस सुनवाई  को लिया जायेगा.

     उसके बाद में २८ ऑगस्ट २०१९ को ऍड. फली नरीमन के देशद्रोह के अपराधों के बारे में और पी. चिंदबरम को गिरफ्तार होने  की  खबर दैनिक  साहसिक   में  प्रकाशित  हुई.  एड.  फली  नरिमन ने   इंडियन एक्सप्रेस    में  16   फरवरी 2019  के  प्रकाशित  लेख  में  लोगों  को भारतीय सेना,  पुलीस  और  सरकार के   खिलाफ   और   पाकिस्तान समर्थन में  उकसाकर  ऐसा  करना  गुनाह  नहीं  हैं  यह  समझाने  की साजिश की.  इसके  खिलाफ  इंडियन  बार   एसोसिएशन  के  राष्ट्रीय अध्यक्ष एड. निलेश ओझा  और  मानव  अधिकार  सुरक्षा  परिषद  के राष्ट्रीय सचिव श्री. रशीद खान पठान ने शिकायत  दर्ज कर एड.  फली नरिमन को गिरफ्तार करने की मांग की और जैसे ही दैनिक  साहसिक में 26 अगस्त 2019 को  इसकी  खबर  छपी  तो  इससे  नरीमन  गैंग घबराकर तुरंत हरकत में आगई और  चीफ  जस्टिस  रंजन  गोगोई  से मिलकर फली नरीमन को बचाने के लिए जस्टिस दीपक गुप्ता  से बात कर २०१० के साल का ऍड.  प्रशांत  भुषन  का  मामला  प्रलंबित होते हुये भी 2019 के मामले को बोर्ड पर लिया और  सुनवाई  २  सितम्बर २०१९ को तय की.


 

                         पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 

  
       यह बात गौर करने लायक है सुप्रीम कोर्ट की महिला कर्मचारी के शोषण मामले में की   गयी  साजिश  में  जस्टिस  दीपक   गुप्ता   और जस्टिस नरीमन को भी आरोपी बनाकर गंभीर करवाई  के  लिए  ऑल इंडिया  एस. सी. , एस.  टी  एंड  मायनॉरिटि  लोयेर्स  असोसिएशन के चेयरमैन एड. विवेक रामटेके द्व्यारा  २७ मई २०१९  को  राष्ट्रपति  के पास दर्ज केस नं. PRESEC/E/2019/10201 अभी भी है.
                  
उस केस की Prayer Clause (1) इस प्रकार है.

 “1. Direction for immediate consideration of  serious greviences of “Women in Criminal  Law  Association” dated   8th  May, 2019v  and   direction  as  per Constitution  Bench  Judgment  in K. Veeraswami Vs. Union  of  India  ( UOI ) and  Ors. 1991 ( 3 )  SCC  655, Raman Lal (High Court Judge)Vs. State 2001 Cri. L.J. 800, Justice Nirmal Yadav case 2011 ( 4 ) RCR ( Cri. ) 809.  to  register F. I. R.  Against  Shri.  Ranjan  Gogoi, Chief Justice of India, Smt. Rupanjali Gogoi, Justice Rohinton Nariman &  Justice Deepak Gupta and Ors. under section 409, 217, 218, 219, 192, 466,  471, 474, 167,  166,  r/w  120  (B) & 34 of Indian Penal Code by taking vadvice  of  competent,  impartial   Judges  of Hon’ble Supreme Court as mentioned in para “60” of K. Veeraswami’s    case  1991  ( 3 )  SCC  655 , with direction to do investigation..’’

     ऐसे में उसी आरोपी जस्टिस दीपक गुप्ता को दुसरे आरोपी नरीमन का केस देना अपने आपमें यह साबित करता है की कैसे  सुप्रिम  कोर्ट की संपत्ती का दुरूपयोग आरोपियों को बचाने के लिए किया गया.
   २ सितंबर २०१९ को बेंच पर बैठते ही ७ सितंबर २०१९ को जस्टीस दीपक गुप्ता को अहमदाबाद मे परलीन ट्रस्ट जिसके डायरेक्टर दुष्यंत दवे है, वहापर फली नरीमन को बचाने के उद्देश से भाषण देने के लिए बुलाया गया.

     वहापर दिपक गुप्ता ने एड. फली नरिमन को बचाने के लिए भाषन देकर भारतीय सेना, पुलीस और सरकार के खिलाफ और  पाकिस्तान का समर्थन करना गुनाह नहीं होता यह जताने का प्रयास किया.
        बाद में उस जस्टिस दीपक गुप्ता ने आरोपी जस्टिस नरीमन और वकिल सिध्दार्थ लूथरा, मिलिंद साठे  को  बचाने  के  लिए  झूठे  सबुत बनाकर और संविधान aपीठ के  आदेशो के खिलाफ  जाकर एड. फली नरिमन और जस्टिस रोहींटन नरिमन के  अपराधों  को   उजागर करनेवाले   दो  वकील    ऍड . निलेश  ओझा,  ऍड.  विजय कुर्ले  और मानवधिकार कायकर्ता   श्री. रशीद खान पठाण को कोर्ट   अवमानना की सजा सुनाई.

        इस बारे में ऍड. निलेश  ओझा ने न्यूज़   चॅनेलो  को  दिए  अपने साक्षात्कार में जस्टिस दीपक गुप्ता की  अकार्यक्षमता सुप्रीम  कोर्ट  के रिकॉर्ड की चोरी, जालसाजी उनके द्वारा  पद  का  दुरूपयोग कर किए गये गंभीर अपराधोकी जानकारी दी.
     जब वकीलों और नागरिको को जस्टिस दीपक गुप्ता के गुनाहों की जानकारी मिली तो  वकीलों  तथा  नागरिकों  में  आक्रोश  छा  गया.
   
   कई वकील संघटनो, गैर सरकारी संघटन, एन.जी.ओ ने  अपनी ओर से लिखित रूप में राष्ट्रपति, चीफ जस्टिस   ऑफ   इंडिया,  प्रधानमंत्री आदि को निवेदन देकर दोषी जजेस के खिलाफ   तुरंत   कारवाई   की मांग की है.
    
     ज्ञात हो की इससे पहले भी 10 जनवरी और 3 फरवरी 2020 को 'Suo Moto  Contempt  Petition  02  of  2020  Re:  Vijay Kurle  & Ors.' मामले में  सुप्रिम  कोर्ट  के  करीब  500  वकीलों  ने रशीद खान पठान और अन्य दोनों  के  समर्थन  में  वकालतनामा  पेश किया था. कोर्ट के हाॅल में जगह न होने की वजह से उन्हें  बाहर  रहना पड़ा था फिर भी करिब 148 वकीलों के नाम  कोर्ट के  आदेश  में  आ पाए  थे और वकीलों की इतनी भीड़ देख कर जस्टिस दिपक गुप्ता  ने समय न होणे का बहाना देकर सुनवाई टाल दी.

    देश के इतिहास में इतने ज्यादा वकिल कभी किसी कोर्ट अवमानना की केस में उत्तरवादी की ओर से हाजिर नहीं हुए थे.

     बाद मे नरीमन लॉबी के लोगो ने ऍड. दुष्यंत दवे को मॅनेज कर 25 फरवरी  2020  को  S. C. B. A. की  ओर  सेv दीपक गुप्ता का वही भाषण फिर से रखवाकर वकीलो को गुमराह करने का प्रयास  किया. गौर करने की बात यह है की 2 सितंबर 2019  को  फली  नरीमन  के समर्थन   मे  दीपक   गुप्ता  का  भाषण   रखने    वाली  ट्रस्ट (Pralin Charitable) के डायरेक्टर भी दुष्यंत दवे ही है.
        
         और बार एसोसिएशन के अध्यक्ष होते हुए भी एड. दुष्यंत दवे ने वकिल नीलेश ओझा, विजय कुर्ले के उपर हो रहे अन्याय पर कोई  पत्र जारी नही किया. जबकी अन्य जजो के गैरकानूनी  हरकतो  पर हमेशा पत्र, लेख प्रकाशित करनेवाले दुष्यंत दवे जस्टीस रोहिंटन नरीमन और जस्टीस दीपक गुप्ता के जघन्य अपराधो पर चुप थे  और दीपक  गुप्ता को अप्रत्यक्ष मंच उपलब्ध करा  रहे  थे  इससे  उनकी  भूमिका की भी इस आपराधिक साजिश   मे  उन्हे  आरोपी  बनाता  हैं  इसलिए  जांच आवश्यक है.
       एड. दुष्यंत दवे और नरिमन ग्रुप की जातियवादी और राष्ट्रविरोधी मानसिकता साबित करणे के अन्य सबुत इस प्रकार हैं.
                                                                                  
1)       सुप्रीम कोर्ट के जज भुषण  गवई  कि  सुप्रीम कोर्ट के  जज के नियुक्ती के  वक्त पर पुरे देश में  केवल,  नरिमन  लॉबी  के  एड. दुष्यंत दवे ने ही विरोध किया था. उन्होंने जस्टिस गवई के खिलाफ  कई  बार पत्र लिखे. किंतु संगीन अपराध करणे वाले जस्टिस रोहिंटन नरिमन के खिलाफ कभी नहीं बोले. 

2)    दुसरे  दलीत जज  पी. डी.  दिनाकरण के सुप्रीम कोर्ट जज के नियुक्ती के खिलाफ  एड.  फली  नरिमन   और  एड. शांती  भूषण   ने विरोध किया. वह विरोध एक सुप्रीम कोर्ट के  जज के  उम्मीद्वार  द्वारा प्रायोजित किया गया था. वह ब्लॅक मनी कितने सौ करोड्र  में  थी  यह सी. बी. आई. और ई. डी. की जांच का विषय हैं.

3)    भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की गुजरात मे जाती मालुम होते ही उन्हे सामान के साथ बाहर फेकनेवाले इसी रोहिंटन नरिमन के रिश्तेदार थे जो इस बात को बडे गर्व से बताते हैं. और हमेशा संविधान को मानणे से इंकार करणे के  लिए  नयी नयी  तकनिक, झुठे केस  लॉ बनाते रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट की संपत्ती का दुरूपयोग करते रहते हैं.

4) दलीत जज सी. एस. कर्णन को खुद के ही केस में आदेश पारित करणे पर यही नरिमन  लॉबी  टूट  पडी  थी  और  जस्टिस  कर्णन   के मानसिक स्वस्थता की जांच क्या ये  पागल  क्या ये  पागल तो  नहीं  हैं इस कारण से करवाई गई. और उन्हे छह महिने की सजा दि  गई. परंतु वैसी ही गलती जस्टिस रोहिंटन नरिमन ने  27  मार्च  2019, 12 मार्च 2019 को की और खुद हि आरोपी रहते हुए खुद ने  ही  जज  बनकर आदेश पारित किए. 
     तो एड. दुष्यंत दवे चूप क्यू रहे. क्या इस देश में एड. दुष्यंत दवे का कानुन जाती देखकर बदलता हैं?   भारतीय   संविधान  की  धारा  14 कानुन के आगे सब समान क्यो नहीं मान रहें. देश की  जनता को  बार बार मूर्ख नही बनाया जा सकता.

5)    जिस कानून से बाल ठाकरे को (2005) 1 SCC 254 में बरी किया जाता हैं वह पुर्ण खंडपीठ के  आदेश  को  निचली  खंडपीठ  के दिपक गुप्ता मानने से मना कर अल्पसंख्याक  समुदाय  के  श्री. रशीद खान पठान को और दो वकीलों को सजा सुनाते हैं तब एड. दुष्यंत दवे चुप बैठते हैं और उसी दिपक    गुप्ता का   रिटायरमेंट  का   फेअरवेल आयोजित कर उसकी तारिफ करते हैं

6)     ज्ञात हो की जस्टिस दिपक गुप्ता भी दलीतो को  सुप्रीम  कोर्ट जज बनाने में आरक्षण का  विरोध   दि.   8 मई   2020 को   इंडियन एक्सप्रेस में दर्ज कराता हैं. इससे इस लॉबी की असलीयत पता चलती हैं.

     इन सब सबूतो के आधार पर यह साबित होता हैं की जस्टिस रंजन गोगोई एक भष्ट्राचारी और आरोपियो के दबाव  मे  आनेवाले  जज थे. 
ऐसे में उनके  द्वारा दिए गये सभी महत्वपूर्ण फैसलो की जांच कर फिर से सुनवाई करना जरूरी है.
                                                 

                                                      
जस्टीस दीपक गुप्ता के 35 अपराध :-
    
     कानून के मुताबिक आरोपी जज को खुद के केश में आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है. ऐसी ही गलती करने वाले  जस्टिस  कर्णन के खिलाफ चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने डॉक्टरो की कमिटी बनाकर कही वो पागल तो नही है. उनसे कोर्ट के सारे काम निकाल  लिए  गए. और बाद मे जस्टिस कर्णन ६ महीने के लिए  जेल भेज दिया था. किंतू वैसा ही गुनाह करणेवाले जस्टिस नरिमन के  खिलाफ कोई कारवाई न करते हुए उनके उसी गुनाह को जस्टिस  दिपक  गुप्ता  की  Smaller Bench ने सही ठहराने का प्रयास किया जो संविधान पीठ के आदेशों के खिलाफ हैं.
    
     जस्टिस दिपक गुप्ता ने अपने 27 एप्रिल 2020 के आदेश मे माना की ऍड. विजय कुर्ले ने जस्टिस नरिमन के खिलाफ  ढेर  सारे  लिखीत दस्तावेजो के सबूत पेश किए. किंतू वे सबुत क्या थे इस बात का जिक्र आदेश मे नही किया. उस सबूतो मे  जस्टिस नरिमन  और एड. मिलींद साठे के कार्यक्रम के फोटोग्राफस और सुप्रिम कोर्ट के  रजिस्ट्रार  द्वारा दिए गए लिखीत सबूत थे  और  कई  महत्वपुर्ण  दस्तावेज  थे  जिससे जस्टिस नरिमन की आपराधिक साजिश उजागर हो रही थी.
     
       जब 4 मई 2020 को उत्तरवादीयो ने यह मुद्दा उठाया की कोर्ट ने उनके दस्तावेज देखे ही नही और सबूतो के खिलाफ जाकर झूठी  बात लिखकर आदेश पारीत  किए  है तो   जस्टीस   दीपक   गुप्ता ने    वह दस्तावेज कोर्ट रिकॉर्ड से नष्ट करवा दिए और उनकी m साजिश  मे  ऍड. सिद्धार्थ लुथरा भी शामिल है ऐसे सबूत   रशीद   खान   पठाण ने चीफ जस्टीस ऑफ़ इंडिया को अपनी शिकायत के साथ पेश किए है.
    जस्टीस दीपक गुप्ता का और दुसरा झुठ कोर्ट रिकॉर्ड से ही साबित हो गया. उत्तरवादी क्र. 3 ऍड. नीलेश ओझा ने  जस्टीस  दीपक   गुप्ता को मामले की सुनवाई से हटने के   लिए   Recusal   Application I.A. No. 48502 of 2020 दाखिल किया उसमे कुल 23 मुद्दे थे. जिसमे जस्टीस दीपक गुप्ता द्वारा उत्तरवादीके  वकीलो को  धमकाना, झूठे सबूत बनाना, रजिस्ट्रार की रिपोर्ट और चीफ जस्टीस  ऑफिस के रिकॉर्ड के खिलाफ जाकर झूठी बाते आदेश मे लिखना, संविधान पीठ के आदेशो को मानने से मना करना,  खारीज  हो  चुके  (overruled) आदेशो के तहत गैरकानूनी आदेश  परीत  करना,  संविधान के  कलम 14 का उल्लंघन करते हुए भेदभावपूर्ण व्यवहार  करना, आरोपी  ऍड. सिद्धार्थ लुथरा को बचाने का प्रयास करना आदी आरोप थे. 
    
      लेकिन जस्टीस दीपक गुप्ता ने अपने 04.05.2020 के आदेश मे झूठ लिखा की वह अर्जी केवल एक ही मुददे पर दाखिल  की  गयी  है की जस्टीस दीपक गुप्ता केस मे जल्दबाजी कर रहे है. यह झुठ सुप्रीम कोर्ट  की  वेबसाईट   पर  इस I. A.  No. 48502   of   2020   को डाऊनलोड करके देखा जा सकता है. 

       दुसरा बडा झुठ ऐसा लिखा है की चुकि उत्तरवादियोने 27 एप्रिल 2020 के पहले ऐसा कोई ऑब्जेक्शन नही लिया की उन्हे अपना पक्ष रखने  का  पुरा  मौका नही मिला    ( Fair Hearing ),   इसलिए 27 एप्रिल 2020 का  आदेश  वापस लेने   Recall  of order की  अर्जी नही सुनी जा सकती Review पुर्नविलोकन की अर्जी करनी होगी.
     इस बात का झूठ इससे ही साबित हो गया की 16 मार्च 2020 को तीनो उत्तरवादियो ने   लिखीत   रूपमे  अपना  (objection)  विरोध दायर किया था कि उन्हे अपनी  बात  रखने का मौका  नही दिया  गया इसलिए मामले की पुनः  सुनवाई की जाए. 
        इन अपराधो के अलावा जस्टीस दीपक गुप्ता और अन्य लोगो ने अपराधिक साजिश कर किए गए 35 गुनाहो की  लिस्ट  पुरे सबूतो  के साथ चीफ जस्टीस ऑफ इडिया को सौपी गई है. 

    झुठे  सबूत बनाकर गैरकानूनी आदेश पारीत करने, कोर्ट की संपत्ती का दुरूपयोग करने, कोर्ट के रिकॉर्ड से  सबूत  नष्ट  करने,  झुठे  सबूत बनाकर उन्हे सच्चे  सबूत  दिखाकर  गैरकानूनी  आदेश  पारीत  करने वाले   जज  और  उनकी  इस   साजिश  मे  उनका साथ  देनेवाले ऍड. सिद्धार्थ लुथरा जैसे वकिलो को आय. पी. सी. की  धारा  409, 167,  192, 193, 201, 218, 219,  220,  211,  469, 471, 474 r/w 120 (B),  34,  109 के तहत कठोर सजा का प्रावधान है. हाल ही मे जस्टीस निर्मल यादव के खिलाफ सी. बी. आय ने चार्ज-शीट दायर की थी. [  Mrs. Nirmal Yadav Vs. C.B.I. 2011 (4) RCR ( crl. ) 809]

     दिल्ली हाई कोर्ट के जज शमीत मुखर्जी ऐसे ही मामले मे गिरफ्तार हुए थे. [    Shameet   Mukherjee  Vs. C. B. I.  2003   SCC OnLine Del 821] ऐसे जज और सरकारी वकिलो को भी गिरफ्तार कर चार्ज शीट भेजा गया था. [ K. Rama Reddy 1998 (3) ALD 305, Kamlakar Bhavsar 2002 All MR 2269,  Govind Mehta AIR 1971 SC 1708]

        ममता बॅनर्जी की लोकसभा सांसद महुमा मोईत्रा ने भी श्री रशीद खान पठाण, एड. निलेश ओझा और एड.  विजय  कुर्ले  के  मामले  में दिए गए आदेश की कडी निंदा की हैं. 
    अपने 29/04/2019 के लेख में उन्होंने लिखा की सुप्रिम कोर्ट यह कंन्टेम्प्ट कोर्ट नही हैं यह हक की रक्षा  करनेवाला  हैं.  (  Supreme Court is not a  Court  of   Contempt,  but  a   court   of Right.) उन्होंने लिखा की रशीद खान पठान ने सुप्रिम कोर्ट को बंधक बनाया कहने से बेहतर होगा  की  नागरिको  के  अधिकारो  को  बंधक बनाने के मामले में सुप्रिम कोर्ट मुकदर्शक बना  पडा हैं. जस्टिस  रंजन गोगोई का गेम ओव्हर. 





      देशद्रोह और अपराधी क साजिश के मामले मे स्पष्ट कानुन बनाया गया हैं और इव्हीडेंस  अॅक्ट में सेक्शन 10 में स्पष्ट प्रावधान   हैं   की अगर देशद्रोहीयों और राष्ट्रविरोधी ताकतों के समर्थन अगर कोई व्यक्ती हिंसा को बढावा देने के उद्देश से कोई  लेख   प्रकाशित   करता   हैं या करवाने में मदत करता हैं तो वह व्यक्ति भी देशद्रोह का आरोपी हैं.

 सेक्शन 120 (B) ऑफ आई. पी. सी. मे एक जज को आरोपी बनाते समय सुप्रीम कोर्ट ने Raman Lal Vs. State 2001 Cr.L.J. 800 में स्पष्ट किया की ऐसी साजिश करने वाले आरोपी  पडदे  के  पिछे  से खेल सकते है उनकी हरकतो से तथा उनके द्वारा प्रत्यक्ष  या  अप्रत्यक्ष समर्थन के आधार पर उन्हे आरोपी बनाना चाहीए. 
     
         स्पष्ट सबुत की आवश्यकता नहीं हैं. ऐसा  ही  कानुन   Navjot Sandhu (2005) 11 SCC 600, Ram Narain AIR 2003 SC 2748,  C. B. I.  Vs.  Bhupendra  2019 SCC OnLine Bom 140 में बनाया गया हैं.
        
          जो व्यक्ती अपनी हरकतो से आरोपियों/देशद्रोहीयों को फायदा पहुचाने के लिए कार्य करता हैं या उसे रोकने की  जिम्मेदारी  होते  हुए भी चुप रहकर देशद्रोहीयों को  अपने  गैरकानूनी  अपराधिक  साजिश को अंजाम में पहुचने का रास्ता सुलभ करता हैं वह भी मुख्य अपराधी के बराबर ही उम्रकैद की सजा का हकदार हैं.


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