झूठी शिकायत देने वाली महिला के खिलाफ कोर्ट द्वारा उम्रकैद की सजा वाली धाराओं के तहत कारवाई

  झूठी शिकायत देने वाली महिला के खिलाफ कोर्ट द्वारा उम्रकैद की सजा वाली धाराओं के तहत कारवाई





∆   बलात्कार की झूठी रिपोर्ट बनाने के लिए महिला के खिलाफ कोर्ट ने की कारवाई।





∆          झूठी शिकायत करने वाली महिलाओं की दुकान बंद।

 

∆        इस मामले में न्यायिक अधीक्षक खुद बनेंगे शिकायतकर्ता।


∆       आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 340, 195 के तहत आवेदन पर न्यायालय का आदेश।


∆         भारतीय दंड संहिता की  धारा १९३ ,१९४,१९९,२०० और २११  के तहत महिला के खिलाफ मामला चलाया जाएगा और यह मामला सत्र न्यायालय में चलाया जायेगा और इस तरह के सम्बंधित मामलो में आरोपी महिला को कम से कम १० वर्षोतक या फिर आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान हैं।


∆        इससे पहले पुलिस जांच अधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा १९४,२११ के तहत सुप्रीम कोर्टने ऐसेही कारवाई को उचित ठहराया था |


∆         ऐसे मामलों में केस की सुनवाई के दौरान भी आरोपी महिला को बिना जमानत के जेल में रखने का प्रावधान है।


पुणे / विशेष संवाददाता – महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून का दुरूपयोग करके अपने गलत उद्देश को अंजाम देने के इरादे से, पुणे के जानेमाने बिल्डर के खिलाफ बलात्कार की झूटी शिकायत दर्ज करनेवाली महिला को अदालत ने सबक सिखाया और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 194 के तहत आजीवन कारावास की कारवाई का आदेश देते हुए, वाई [सातारा] के कोर्ट के सहायह अधीक्षक श्री. एस. डी. ढेकणे को शिकायतकर्ता के रूप में नियुक्त किया गया है। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, अभियुक्त को मामले में जमानत मिलना असंभव है और यह संभव है कि आरोपी महिला को जेल में रखकर पूरे मामले का संचालन किए जाने की संभावना अर्जदार मनीष मिलाणी के वकील निलेश ओझा द्वारा व्यक्त किया गया है।



                                    ऍड. नीलेश ओझा
                                      राष्ट्रीय अध्यक्ष
                                 इंडियन बार  एसोसिएशन




                                रशीद खान पठान
                                   राष्ट्रीय सचिव
                       मानव अधिकार सुरक्षा परीषद



   
                                   मुरसलीन अ.शेख
                                       जिल्हा अध्यक्ष
                            मानव अधिकार सुरक्षा परिषद
                     


       

 ऍड . विवेक रामटेके
                                          चेयरमैन 
                                ऑल इंडिया एसी एस.टी
                            मायनोरीटी लॉयर्स एसोसिएशन


इस संबंध में विस्तृत समाचार यह है कि पुणे के प्रसिद्ध व्यवसायी मनीष मिलानी की विमाननगर, पुणे में 80 एकड़ भूमि है। जमीन का बाजार मूल्य हजारों करोड़ में है। मिलानी से फिरौती वसूलने के लिए, पुणे के एक आपराधिक मानसिकता के वकील अँड. सागर सूर्यवंशी  ने दस्तावेजों और झूठे साक्ष्य गढ़कर वादी को परेशान करने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। मिलानी की सतर्कता और कानूनी लड़ाई के कारण, सागर राजाभाऊ सूर्यवंशी को गिरफ्तार कर लिया गया। जमानत पर रिहा होने के बाद, आरोपियों ने फिर से झूठे सबूत गढ़ने का आरोप लगाना शुरू कर दिया।


उन्होंने मिलणी के खिलाफ अनु. जनजाति  कानून  [Atrocity Act] और कई अन्य झूठी शिकायतें दर्ज करवाई लेकिन मिलानी ने आरोपियों के दबाव में आए बिना मुकदमा चलाया और अपनी कानूनी लड़ाई जारी रखी और सभी मामलों में आरोप झूठे साबित हुए और पुलिस ने सागर सूर्यवंशी और अन्य के खिलाफ आरोप पत्र भी दायर किया। सागर सूर्यवंशी की जमानत को पुणे की सेशंस कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सभी अदालतों ने खारिज कर दिया और आरोपी को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया। सागर सूर्यवंशी आत्मसमर्पण करने के बजाय भाग गया। भगौड़े आरोपी ने कुछ महिलाओ को साथ लेकर मिलाणी के खिलाफ बलात्कार के झूठे मामले दर्ज किए। लेकिन पुलिस जांच ने मामलों को झूठा साबित कर दिया गया।

पुलिस ने केंद्रीय खुफिया एजेंसी [आई.बी.], केंद्रीय गृह मंत्रालय, मोबाइल टावर लोकेशन आदि से मिले सबूतों के आधार पर बनाई अपनी रिपोर्ट से  कहा कि मिलानी दो तारीखों पर अपने परिवार के साथ विदेश [अमेरिका] में था, जब महिला ने बलात्कार और धमकी की शिकायत दर्ज कराई थी।

 

आरोपी महिला ने पुलिस रिपोर्ट को चुनौती देते हुए विरोध याचिका [Protest Petition] दायर की। हालांकि, अदालत ने महिला की याचिका को खारिज कर दिया और पुलिस रिपोर्ट को मान्य किया। अदालत ने याचिकाकर्ता मनीष मिलानी को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 340 के तहत महिला के खिलाफ आपराधिक कारवाई करने का भी निर्देश दिया। आवेदन को मंजूर करते हुए अदालत ने फैसला सुनाया कि महिला के खिलाफ कारवाई की जाए । अदालतने खुद को शिकायतकर्ता बनाकर, अदालत के सहायक अधीक्षक श्री. एस. डी. ढेकणे को अधिकारी के रूप में नियुक्त किया और आरोपी महिला के खिलाफ आईपीसी की धारा 193, 194, 199, 200 और 211 के तहत मामले दर्ज करने का निर्देश दिया है।



यह पता चला है कि सत्र न्यायालय में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 341 के तहत एक याचिका दायर की जा रही है ताकि मामले के  षड़यंत्र में शामिल अन्य अभियुक्तों के खिलाफ इसी तरह की कारवाई की जा सके। और इस मामले में याचिकाकर्ता की और से अँड. नीलेश ओझा के साथ सदाशिव सानप, ईश्वरलाल अग्रवाल, गोपाल कहले, प्रवीण चावरे, विजय पमनानी, दीपाली ओझा, प्रतीक जैन सकलेचा, शिवम मेहरा, मंगेश डोंगरे, दीपिका जैस्वाल, पूनम राजभर, अभिषेक मिश्रा, स्नेहल सुर्वे, सिद्धि धमनसकर आदी वकील काम कर रहे हैं।

इंडियन बार एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अँड .नीलेश ओझा ने 2017 में झूठे हलफनामों और झूठे मामलों (Law of Perjury) के खिलाफ कारवाई करने के लिए एक पुस्तक प्रकाशित की है। वह मामले की जांच करने और ' कौन सही हैं यह देखने के बजाय क्या सही है '' [‘Don’t see who is right, see what is right’] के सिद्धांत पर अदालत में केस चलाने के लिए सालों से लड़ रहे है। उनकी पुस्तकों की प्रतिया ‘इंडियन बार एसोसिएशन’,’मानव अधिकार सुरक्षा परिषद’, ‘ऑल इंडिया एस. सी. एस. टी और अल्पसंख्यक वकील एसोसिएशन’ ने इसे देश के विभिन्न न्यायालयों में न्यायाधीशों, बार संघों, बार काउंसिलों आदि में वितरित किया है और उनके समर्थक, पदाधिकारी और स्वयंसेवक 'मानवतावादी ग्लोबल इंडिया निर्माण अभियान' के मिशन के लिए कई वर्षों से अथक प्रयास कर रहे हैं।

उस जन जागरण अभियान के परिणाम पिछले कुछ समय से और यहां तक कि आम जनता, वकीलों और न्यायाधीशों के बीच भी दिखाई दे रहे  हैं और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 340 के तहत कारवाई के लिए अनुकूल वातावरण बनता जा रहा है तथा झूठे गवाह और सबूत ,झूठी शिकायते देने वालो के खिलाफ क़ानूनी कारवाई हो रही है।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने  रजनीश बनाम नेहा 2020 SCC OnLine SC 903 मामले में, देश की सभी अदालतों को झूठी गवाही देनेवालो के खिलाफ धारा 340 के तहत दोषियों के खिलाफ कारवाई करने का निर्देश दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर एक कानून बनाया है कि अगर अदालत से गलत आदेश प्राप्त करने के लिए झूठी शिकायत या झूठे सबूत देनेवाले व्यक्ति के खिलाफ 340 आपराधिक प्रक्रिया संहिता और अदालत अवमानना की कारवाई होनी चाहिए अन्यथा ऐसे माना जाएगा कि संबंधित न्यायाधीश ने अपनों कर्तव्योंका उल्लंघन किया है। कानून में यह प्रावधान है कि ऐसे मामले में आरोपी के खिलाफ कारवाई करने से बचने वाला न्यायाधीश धारा 218, 201, 166, 219 आदि के तहत सजा के लिए उत्तरदायी होता है और इस संबंध में सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों द्वारा विभिन्न निर्णय पारित किए गए हैं।

 

झूठे आरोप लगाने वाली महिला के खिलाफ कारवाई किए बिना महिला के पक्ष अवैध रूप से चार्जशीट दाखिल करने वाले पुलिस जांच अधिकारी यह 211 के तहत सजा के लिए उत्तरदायी होंगे, सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित महिला पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कारवाई का आदेश दिया है। पेरुमल बनाम जानकी [2014] 5 SCC 377 इस मामले यह कानून बनाया गया है।

 

साथ ही, किसी भी तरह से अभियुक्त को दंडित करने के बुरे इरादे के साथ झूठे जांच पत्र और सबूत बनाने वाले पुलिस अधिकारी को दंडित किया जाना चाहिए इस नियम के तहत दोषी पुलिस अधिकारी की धारा 194 के तहत सजा को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। [सुरेश शर्मा बनाम राज्य 2009 Cri.L.J. 4288 [SC], अरविंदर सिंह (1998) 6 SCC 352]

पुलिस अधिकारी ने गवाह के झूठे जवाब, झूठी स्टेशन डायरी को दर्ज किया और अदालत में दायर किया उन पुलिस अधिकारियो के लिए एक कानून है जो धारा 192, 193 आदि के तहत दंडनीय है [बाबू बनाम राज्य 2007 Cri.L.J. 3802, अरिजीत सरकार 2017 SCC OnLine Cal 13, मोद जहिद बनाम राज्य 1981 Cri.L.J. 2908]

 

न्यायाधीशों, सरकारी वकीलों, आरोपी वकीलों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी कारवाई के लिए इसी तरह के कानून बनाए गए हैं। [गोविंद मेहता बनाम राज्य AIR 1971 SC 1708, के. राम रेड्डी 1998 [3] ALD 305, राज्य बनाम  कमलाकर भावसार 2002 ALL MR [Cri.] 2640]

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