सुप्रीम कोर्ट का जज निकला चोर. हो सकती है उम्रकैद ?
सुप्रीम कोर्ट का जज निकला चोर. हो सकती है उम्रकैद.
निवृत्त जज दीपक गुप्ता द्वारा महत्वपूर्ण रिकॉर्ड की चोरी ओर झुठे सबुत बनाने की साजिश का पर्दाफाश.
सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार द्वारा दिये गये पत्र, केस रिपोर्ट से फसे दीपक गुप्ता.
आय. पी. सी. 409 मे दीपक गुप्ता को हो सकती हैं उम्रकैद.
जस्टिस रोहींटन नरिमन, जस्टिस विनीत सरण, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, ऍड. सिद्धार्थ लुथरा, ऍड. मिलिंद साठे, कैवान कल्यानिवाला ओर खुद को गिरफ्तारी से बचाने के लिये दीपक गुप्ता ने की चोरी ओर जालसाजी.
देशभरके 10 हजार वकिल और लाखो नागरिक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को ई-मेल भेजकर पूर्व चीफ जस्टिस आर. एम. लोढा के नेतृत्व मे एस. आय. टी. बनाकर सी. बी. आय. द्वारा जांच करने की मांग करेंगे.
आरोपी जजो द्वारा किये गए 35 गंभीर अपराधो के स्टिंग ऑपरेशन के साथ सबुत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को पेश.
विशेष संवाददाता:-सुप्रीम कोर्ट के जज (निवृत्त) दीपक गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट मे कोर्ट आवमानना की याचिका SMCP (Cri) No. 02 of 2019 Re: Vijay Kurle & Ors. मामले में दो जजेस रोहिंटन नरिमन ओर विनीत सरण तथा ऍड. सिद्धार्थ लुथरा, ऍड. मिलिंद साठे, कैवान कल्यानीवाला द्वारा किये गए गुनाहो के सबुत मिटाकर मामले को उजागर करणे वाले इंडियन बार असोसिएशन के महाराष्ट्र एंड गोवा प्रदेश के अध्यक्ष ऍड. विजय कूर्ले, राष्ट्रीय अध्यक्ष ऍड. निलेश ओझा ओर मानव अधिकार सुरक्षा परिषद के राष्ट्रीय सचिव श्री. रशीद खान पठाण उनको धमकाने तथा उन्हे झुठे केस मे फसाने का प्रयत्न करणे की साजीश का पर्दाफाश हो गया हैं.
इस मामले में मानव अधिकार सुरक्षा परिषद के राष्ट्रीय सचिव श्री. रशीद खान पठाण ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार से प्राप्त लिखित जानकारी, खुद जस्टिस दीपक गुप्ता द्वारा दिये गए आदेश ओर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के ऑफिस द्वारा संबंधित कामकाज के कानुन एव दस्तावेजो तथा स्टिंग ऑपरेशन की सीडी के साथ लिखित शिकायत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया श्री. शरद बोबडे, राष्ट्रपती श्री. रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री श्री. अमित शाह, सी.बी.आय., आय. बी. तथा सुप्रीम कोर्ट के सभी जजेस (आरोपी जजेस छोडकर), देश के सभी हायकोर्ट की सभी जजेस, देश की सभी बार असोसिएशन एव बार कौन्सिल को भेजकर दोषी जजेस को तुरंत गिरफ्तार करणे की मांग की हैं.
क्या हैं मामला:-
१२ मार्च २०१९ को न्या. रोहिटन नरीमन और विनीत सरन ने बिना किसी सुनवाई के आधार पर सीधे एक ख्रिशचन अल्प्य्संख्याक समुदाय के वकील अॅड. मैथ्यू नेदुमपारा को कोर्ट अवमानना का दोषी करार दे दिया. इस बात से वकील संगठनो में रोष व्याप्त हो गया.
इस देश के सविधान के मुताबिक कोई भी व्यक्ति को दोषी करार देने से पहले न्यायिक प्रक्रिया नुसार उसे नोटिस देना, बचाव का मौका देना, आरोप निश्चित करना, केस लड़ने के लिए वकील देना बंधनकारक है.
अजमल कसाब जैसे आतंकवादी को भी सभी सुविधा दी गयी थी. लेकिन एक अल्प्य्संख्यक समुदाय के वकील को व्यक्तिगत दुशमनी के चलते सविधान के खिलाफ जाकर दोषी करार दिए जाने के खिलाफ इंडियन बार आसोशियेशन के महाराष्ट्र और गोवा के अध्यक्ष अॅड. विजय कुर्ले और मानव अधिकार सुरक्षा परिषद् के राष्टीयसचिव रशीद खान पठान ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पास शिकायत दर्ज की.
उन्ही दो जजो ने दुसरे एक मामले मे एक आरोपी को बचाने के लिए पद का दुरुपयोग कर गलत आदेश पारीत करणे को लेकर की थी उसमे भी जस्टिस नरीमन का भ्रष्टाचार और कानून की समझ ना होणे के सबुत दिये गये थे.
इस शिकायत के अधार पर जस्टिस रोहिटन नरीमन और जस्टिस विनीत सरण की गिरफ्तारी तय मानी जा रही थी. ज्ञात हो की किसी भी व्यक्तो के गलत तरीके से सजा देने वाले जज को ७ साल सजा का प्रावधान आय.पी.सी (I.P.C.) की धारा 220, 219 आदि में किया गया है. और सुप्रिम कोर्ट की संपत्ती का दुरुपयोग खुद के व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए करनेवाला जज आय. पी. सी. की धारा 409 के तहत आजीवन कारावास की सजा का हकदार है.
उस कारवाई से बचने के लिए जस्टिस नरीमन ने एक साजिश के तहत उनके सहयोगी वकील मिलिंद साठे और कैवान कल्यानिवाला के हाथो एक पत्र बनवाकर खुद ही उसका संज्ञान लेकर खुद आरोपी रहते हुए खुद की ही केस में आदेश पारित कर शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया.
कानून के मुताबिक आरोपी जज को खुद के केश में आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है. ऐसी ही गलती करने वाले जस्टिस कर्णन के खिलाफ चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने डॉक्टरो की कमिटी बनाकर कही वो पागल तो नही है इसकी जाच करने की आदेश दिए थे. और बाद मे जस्टिस कर्णन ६ महीने के लिए जेल भेज दिया था.
जस्टीस दीपक गुप्ता ने अपने 27 एप्रिल 2020 के आदेश मे माना की ऍड. विजय कुर्ले ने जस्टीस नरीमन के खिलाफ ढेर सारे लिखीत दस्तावेजो के सबूत पेश किए. किंतू वे सबूत क्या थे इस बात का जिक्र आदेश मे नही किया. उस सबूतो मे जस्टीस नरीमन और एड. मिलींद साठे के कार्यक्रम के फोटोग्राफस और सुप्रिम कोर्ट के रजिस्ट्रार द्वारा दिए गए लिखीत सबूत थे जिससे जस्टीस नरीमन की आपराधिक साजिश उजागर हो रही थी.
जब 4 मई 2020 को उत्तरवादीयो ने यह मुद्दा उठाया की कोर्ट ने उनके दस्तावेज देखे ही नही और सबूतो के खिलाफ जाकर झूठी बात लिखकर आदेश पारीत किए है तो जस्टीस दीपक गुप्ता ने वह दस्तावेज कोर्ट रिकॉर्ड से नष्ट करवा दिए और उनकी साजिश मे ऍड. सिद्धार्थ लुथरा भी शामिल है ऐसे सबूत रशीद खान पठाण ने चीफ जस्टीस ऑफ़ इंडिया को अपनी शिकायत के साथ पेश किए है.
जस्टीस दीपक गुप्ता का और दुसरा झुठ कोर्ट रिकॉर्ड से ही साबित हो गया. उत्तरवादी क्र. 3 ऍड. नीलेश ओझा ने जस्टीस दीपक गुप्ता को मामले की सुनवाई से हटने के लिए Recusal Application I.A. No. 48502 of 2020 दाखिल किया उसमे कुल 23 मुद्दे थे. जिसमे जस्टीस दीपक गुप्ता द्वारा उत्तरवादीके वकीलो को धमकाना, झूठे सबूत बनाना, रजिस्ट्रार की रिपोर्ट और चीफ जस्टीस ऑफिस के रिकॉर्ड के खिलाफ जाकर झूठी बाते आदेश मे लिखना, संविधान पीठ के आदेशो को मानने से मना करना, खारीज हो चुके (overruled) आदेशो के तहत गैरकानूनी आदेश परीत करना, संविधान के कलम 14 का उल्लंघन करते हुए भेदभावपूर्ण व्यवहार करना, आरोपी ऍड. सिद्धार्थ लुथरा को बचाने का प्रयास करना आदी आरोप थे.
लेकिन जस्टीस दीपक गुप्ता ने अपने 04.05.2020 के आदेश मे झूठ लिखा की वह अर्जी केवल एक ही मुददे पर दाखिल की गयी है की जस्टीस दीपक गुप्ता केस मे जल्दबाजी कर रहे है.
यह झुठ सुप्रीम कोर्ट की वेबसाईट पर इस I. A. No. 48502 of 2020 को डाऊनलोड करके देखा जा सकता है.
दुसरा बडा झुठ ऐसा लिखा है की चुकि उत्तरवादियोने 27 एप्रिल 2020 के पहले ऐसा कोई ऑब्जेक्शन नही लिया की उन्हे अपना पक्ष रखने का पुरा मौका नही मिला ( Fair Hearing ), इसलिए 27 एप्रिल 2020 का आदेश वापस लेने Recall of order की अर्जी नही सुनी जा सकती Review पुर्नविलोकन की अर्जी करनी होगी.
इस बात का झूठ इससे ही साबित हो गया की 16 मार्च 2020 को तीनो उत्तरवादियो ने लिखीत रूपमे अपना (objection) विरोध दायर किया था कि उन्हे अपनी बात रखने का मौका नही दिया गया इसलिए मामले की पुनः सुनवाई की जाए.
इन अपराधो के अलावा जस्टीस दीपक गुप्ता और अन्य लोगो ने अपराधिक साजिश कर किए गए 35 गुनाहो की लिस्ट पुरे सबूतो के साथ चीफ जस्टीस ऑफ इडिया को सौपी गई है.
झुठे सबूत बनाकर गैरकानूनी आदेश पारीत करने, कोर्ट की संपत्ती का दुरूपयोग करने, कोर्ट के रिकॉर्ड से सबूत नष्ट करने, झुठे सबूत बनाकर उन्हे सच्चे सबूत दिखाकर गैरकानूनी आदेश पारीत करनेवाले जज और उनकी इस साजिश मे उनका साथ देनेवाले ऍड. सिद्धार्थ लुथरा जैसे वकिलो को आय. पी. सी. की धारा 409, 167, 192, 193, 201, 218, 219, 220, 211, 469, 471, 474 r/w 120(B), 34, 109 के तहत कठोर सजा का प्रावधान है. हाल ही मे जस्टीस निर्मल यादव के खिलाफ सी. बी. आय ने चार्ज-शीट दायर की थी. [Mrs. Nirmal Yadav Vs. C.B.I. 2011 (4) RCR (crl.) 809]
दिल्ली हाई कोर्ट के जज शमीत मुखर्जी ऐसे ही मामले मे गिरफ्तार हुए थे. [Shameet Mukherjee Vs. C.B.I. 2003 SCC OnLine Del 821] ऐसे जज और सरकारी वकिलो को भी गिरफ्तार कर चार्ज शीट भेजा गया था. [K. Rama Reddy 1998 (3) ALD 305, Kamlakar Bhavsar 2002 All MR 2269, Govind Mehta AIR 1971 SC 1708]
मुरसलीन अ. शेख
सचिव
सुप्रीम कोर्ट अँड. हाई कोर्ट
लिटीगंटस असोसिएशन ऑफ़ इंडिया (SCHCLAOI)
Arrest them first and hang till death
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